समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सोशल इंजीनियरिंग के जरिए यूपी का किला फतह करने की तैयारी कर रहे हैं। इसके तहत पार्टी में जहां फ्रंटल संगठनों को मजबूत कर रही है, वहीं पहली बार सपा में दलित संगठन खड़ा कर नए वर्ग को अपने पाले में खींचने की रणनीति पर जोर है। सपा अध्यक्ष ने विजय यात्रा शुरू करने के साथ ही प्रदेश भर में चल रहे पार्टी अभियान की समीक्षा की कमान अपने हाथों में ले ली है।
सपा रणनीतिकारों को इस बात का भरोसा है कि मंहगाई, पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते दाम, किसानों का मुद्दा, बेरोजगारी आदि को लेकर यूपी में भाजपा की सरकार का ग्राफ गिरा है। सपा लोगों के इस गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में जुटी हुई है। ऐसे में पार्टी कार्याकर्ताओं की मेहनत और सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला सपा को यूपी की सत्ता दिला सकती है। यही कारण है कि पार्टी ने प्रदेश की 72 सदस्यीय नई कार्यकारिणी का एलान किया उसमें सभी वर्गों का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया। यहां तक कि जातीय समीकरण ऐसा साधा कि न तो यादवों को ज्यादा जगह मिली और न ही मुसलमानों को। इसमें समाज के वार्गो को प्रतिनिधित्व दिया गया।
दलित संगठन को बनाया मजबूत
पार्टी नेताओं का कहना है कि यूपी में चुनाव करीब होने के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती के नेपृथ्य में रहने का फायदा सपा के दलित संगठन को मजबूती प्रदान कर रहा है। इस संगठन का प्रभारी मिठाई लाल भारती को बनाया है, जो कि लंबे समय तक बसपा में रहे हैं। बसपा की कम हो रही लोकप्रियता के बीच दलितों को नए संगठन की जरुरत महसूस हो रही है। ऐसे में यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा ही एक बड़ा ठिकाना नजर आ रहा है।